भूमिका

साहित्य समाज का दर्पण व दीपक होता है इसलिए साहित्य की महत्ता में कहा गया है
" अन्धकार है वहां , जहां आदित्य नहीं है
मुर्दा है वह देश, जहाँ साहित्य नहीं है ! ”

आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी ने कहा है कि जिस जाति के पास साहित्य नहीं होता, वह बर्बर हो जाती है। इन उक्तियों का अभिप्राय यह है कि वह राष्ट्र व समाज अत्यन्त भाग्यशाली है जिसके पास साहित्य रूपी धन है। भारत में साहित्य की महत्ता सदैव से मान्य रही है। भारत में वाड्मय धारा वेदों से वर्तमान तक निरन्तर प्रवाहमान है। इस गंगा की अनेक धाराएं हैं जिनमें जांभाणी साहित्य की निर्मल धारा भी महत्वपूर्ण स्थान रखती है। बिश्नोई पथ प्रवर्तक गुरू जांभो जी के शिष्यों व अनुयायियों द्वारा लिखित वह साहित्य जांभाणी साहित्य कहलाता है जो गुरू जांभों जी की वाणी, सिधान्तों व जीवन चरित्र से प्रेरित होकर लिखा गया है।

जांभाणी साहित्य हिन्दी भक्ति साहित्य की अमूल्य निधी है। जांभाणी साहित्य की रचना बिश्नोई पथ के प्रवर्तन ;सम्वत् 1542द्ध के साथ ही आरम्भ हो गई थी। गत पांच शताब्दियों में विपुल मात्रा में यह साहित्य लिखा गया है। इस साहित्यधारा में सैंकड़ों ऐसे उच्चकोटि के कवि हुए हैं जिनका साहित्य गुण एवं परिमाण की दृष्टि से सूर, कबीर, तुलसी के समतुल्य है। जांभाणी साहित्य आध्यात्मिक, धार्मिक, दार्शनिक, सांस्कृतिक, सामाजिक व ऐतिहासिक दृष्टि से अत्यन्त ही महत्वपूर्ण है। खेद का विषय है कि अप्रकाशित होने के कारण आज वैज्ञानिक युग में भी इस साहित्य का प्रचार-प्रसार न के बराबर है। बीस हजार से भी अधिक पृष्ठों में समाहित शताब्दियों पुराना यह साहित्य अभी भी लतावेष्टित पड़ा है। विद्वानों के साथ-साथ आम पाठकों व धर्म प्रेमियों की यह हार्दिक इच्छा है कि किसी प्रकार यह साहित्य प्रकाशित होना चाहिए। इसके साथ-2 गुरू जांभो जी की मानव कल्याणकारी शिक्षाओं का भी अधिकाधिक प्रचार-प्रसार हो।

उपर्युक्त उद्दश्यों को मूर्त रूप देने के लिए समाज में एक साहित्यिक संस्था की आवश्यकता दीर्घावधि से अनुभव की जा रही थी। 27-28 फरवरी 2011 को बीकानेर में जांभाणी साहित्य को लेकर आयोजित हुई राष्ट्रीय संगोष्ठी के पश्चात ऐसी संस्था के गठन के विचार को और अधिक बल मिला। स्वामी कृष्णानंद जी आचार्य के आहवान पर साहित्यिक संस्था के गठन पर विचार-विमर्श हेतु समाज के प्रबु( लोगों की एक बैठक आसोज मेला मुक्तिधाम मुकाम के अवसर ;27 सितम्बर, 2011 कोद्ध पर स्वामी रामप्रकाश आश्रम ;संभाथल धोराद्ध में आयोजित हुई। बैठक में गहन विचार विमर्श के पश्चात यह निश्चय किया गया कि जांभाणी साहित्य अकादमी नामक संस्था का गठन किया जाए, जो कि एक राष्ट्रीय स्तर की संस्था हो। समाज के प्रबु(जनों से विचार विमर्श के पश्चात् 31 मई, 2012 को पुनः इस आशय को लेकर गुरू जंभेश्वर संस्थान भवन दिल्ली में एक बैठक हुई जिसमें आठ प्रान्तों के 40 लोगों ने भाग लिया। इस बैठक में अकादमी के लक्ष्यों, उद्दश्यों व संविधान को अन्तिम रूप दिया गया तथा कार्यकारिणी का चुनाव किया गया। शीघ्र ही सभी आवश्यक दस्तावेज तैयार अकादमी के पंजीकरण की फाईल दिल्ली के उतर पश्चिम जिले में पंजीकरण अधिकारी के समक्ष प्रस्तुत की गई। जहाँ 12 जुलाई, 2012 को यह संस्था जांभाणी साहित्य अकादमी नाम से पंजीकरण क्रमांक 5/1151/SDM /NW /2012 के अन्तर्गत पंजीकृत हुई। जांभाणी साहित्य अकादमी का एकमात्र उद्देश्य गुरू जांभोजी की शिक्षाओं व जांभाणी साहित्य का प्रचार-प्रसार करना है।

जांभाणी साहित्य अकादमी के उद्देश्यों की पूर्ति हेतु मुख्यालय, पुस्तकालय व शोध केन्द्र की स्थापना के लिए एक भवन की आवश्यकता है। इस भवन के निर्माण हेतु डॉ०. श्रीमतीद्ध सरस्वती बिश्नोई ;निवासी-बीकानेर ने बीकानेर की व्यास कालोनी (1-e -134 ) में एक भूखण्ड दान में दिया है, जिस पर शीघ्र ही भवन का निर्माण किया जाएगा। वर्तमान में अकादमी का कार्यकारी कार्यालय बिश्नोई सभा हिसार द्वारा उपलब्ध करवाए गए स्थान पर बिश्नोई मन्दिर, हिसार में संचालित हो रहा है।



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प्रो.(डॉ.) इन्द्रा बिश्नोई,      श्री विनोद जम्भ्दास,         डॉ. भंवरलाल बिश्नोई,
अध्यक्ष                           महासचिव                     कोषाध्यक्ष

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