जांभाणी साहित्य अकादमी
साहित्य समाज का दर्पण व दीपक होता है इसलिए साहित्य की महत्ता में कहा गया है
" अन्धकार है वहां , जहां आदित्य नहीं है
मुर्दा है वह देश, जहाँ साहित्य नहीं है ! ”
" अन्धकार है वहां , जहां आदित्य नहीं है
मुर्दा है वह देश, जहाँ साहित्य नहीं है ! ”
आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी ने कहा है कि जिस जाति के पास साहित्य नहीं होता, वह बर्बर हो जाती है। इन उक्तियों का अभिप्राय यह है कि वह राष्ट्र व समाज अत्यन्त भाग्यशाली है जिसके पास साहित्य रूपी धन है। भारत में साहित्य की महत्ता सदैव से मान्य रही है। भारत में वाड्मय धारा वेदों से वर्तमान तक निरन्तर प्रवाहमान है। इस गंगा की अनेक धाराएं हैं जिनमें जांभाणी साहित्य की निर्मल धारा भी महत्वपूर्ण स्थान रखती है। बिश्नोई पथ प्रवर्तक गुरू जांभो जी के शिष्यों व अनुयायियों द्वारा लिखित वह साहित्य जांभाणी साहित्य कहलाता है जो गुरू जांभों जी की वाणी, सिधान्तों व जीवन चरित्र से प्रेरित होकर लिखा गया है।